पुरानी यादे नया माहोल ............
अचानक मोबाईल की घंटी बजती है। घर से बाहर निकलने की लिए पैर में चप्पल डाल रही थी मै। मोबाईल की आवाज से धयान भंग हुआ। अनमने ढंग से मोबाईल उठाया। बहुत पुरानी से आवाज सुनायी दी। बाहर जाना जरुरी था। पर उस आवाज ने रोक लिया। मै अचकचा कर बैठ गई वही सोफे पर। आवाज आई, भूल गई मुझे? नहीं नहीं तुझे कैसे भूल सकती मै, बता और क्या हाल है-मैंने पूछा। एक ठहाके की आवाज आई।
वर्षो बाद सुनी थी मैंने वह आवाज। कभी उस आवाज मे बसती थी मेरी जान, पर आज जब वर्षो बाद सुनी मैंने वह आवाज तो पुरानी वह कशिश गायब थी। बात का सिलसिला जो थमता नहीं था हमारे बीच, आज शुरू ही नहीं हो पा रहा था। जैसे तैसे ख़तम हुई हमारी बाते। उसने भी रख दिया मोबाईल, शायद पूरी बात कहे बिना।
बाहर जाने को बढे मेरे कदम रुक गए।
कितना बदल गया माहोल।
नया यह माहोल।
सिमट गये है हम।